परम भक्त हनुमान
रामचंद्रजी के राज्याभिषेक के समय सीता माता ने हनुमानजी को मणियों की माला उपहार में दी, तो हनुमानजी माला तोडकर एक-एक मणि को दांतों से तोडने लगे और बडे गौर से उन्हें देखने लगे। इस पर लक्ष्मणजी ने क्रोध में पूछा कि क्या कर रहे हो? हनुमानजी ने सहज भाव से कहा कि मेरे राम सर्वत्र विराजमान हैं, कण-कण में रहते हैं। मैं देख रहा था कि इन मणियों में वे विराजमान हैं या नहीं? इस पर लक्ष्मणजी ने कह दिया, क्या तुम्हारे हृदय में भी राम हैं? उत्तर में हनुमानजी ने अपना सीना चीरकर दिखा दिया कि सचमुच सीता व राम वहां विराजमान हैं। ।
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