भील का शिव पूजन
खुद की भस्म से किया शिव का पूजन
सिंहकेतु नाम का एक राजा था। वह शिकार खेलने रोज जंगल जाता था। एक दिन रास्ते में उसे एक शिव मंदिर मिला। उसमें एक शिवलिंग था।
राजा के साथ चण्ड नाम का भील भी था। उसने वह शिवलिंग अपने पास रख लिया व राजा से उसकी पूजन विधि पूछी। राजा ने मजाक में कहा कि इसे रोज नहलाकर इसकी फूल-पत्तियों से पूजा करना व इसे धूप-दीप दिखाना। इस शिवलिंग को भस्म जरूर चढ़ाना और वो भस्म चिता राख ही हो। फिर भोग लगाकर नाच-गाना किया करो।
यह सुनकर भील अपनी पत्नी के साथ रोज शिव पूजन करने लगा। शमशान में रोज भस्म भी मिल जाती थी। एक दिन शिव की माया के कारण उसे भस्म नहीं मिली। वह बहुत दुखी हुआ। उसकी पत्नी ने जब यह सुना तो वह स्वयं ही भस्म होने लगी। भील ने उसे बहुत समझाया पर शिव भक्ति में लीन वह भीलनी जलकर भस्म हो गई।
भील ने बड़े दुखी मन से अपनी पत्नी की भस्म को देखा पर अगले ही पल शिव पूजन में भस्म मिलने की खुशी से वह भर उठा। उसने बड़े प्रेम से उस भस्म से शिव पूजन पूरा किया। तभी एक चमत्कार हुआ। उसकी पत्नी सशरीर उसके पास बैठी शिव पूजन कर रही थी। दोनों ने शिव-महिमा का गुणगान किया और शिवलोक को प्राप्त हुए।
esi kathayo ka vagaynik evam boudhik adhhar kya hai. keval janshruti kalpnik bate jo sadiyo se batai ja rahi hai kya ve sahi hain.
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